कुछ नहीं होने का सुख

कुछ नहीं होने का सुख-


जिन्‍दगी भर लगे रहे कि कुछ बन जाएँ, अपना भी नाम हो, सम्‍मान हो। लेकिन अब पूरी शिद्धत से मन कर रहा है कि हम कुछ नही हैं का सुख भोगे। जितने पंख हमने अपने शरीर पर चिपका य उगा लिये है, उन्‍हें एक-एक कर उखाड़ने और कतरने का मन है। कभी पढ़ाई की, कभी नौकरी की, कभी सामाजिक कार्य किये, कभी लेखन किया और सभी से लेकन न जाने कितने पंख अपने शरीर में लगा लिये। हम यह है और वह हैं, हमारी पहुँच यहाँ तक है और वहाँ तक है। दर परत हम पर चढ़ती गयी और हम हमारे वास्‍तविक स्‍वरूप से दूर होते गये। हमारे अंदर का प्रेम न जाने कहाँ और कब रीत गया, बस हमें दूसरों से सम्‍मान मिले यही चाहत बसकर रह गयी। लेकिन अब समझ आने लगा है कि यह सम्‍मान कल्‍पना है जैसे हमने स्‍वर्ग और नरक की कल्‍पना कर ली है वैसे ही ये सम्‍मान भी होते हैं। बस एक छलावा और कुछ नही। हम खुद से दूर होते चले जाते हैं, हमारे अंदर कितना कुछ है, खुद को देने के लिये यह भूल जाते हैं और बस दूसरों से पाना ही चाहत बन जाती है। मैं अपने आपको खोद रहा हूँ और न जाने कितनी संवेदनाएँ अन्‍दर छिपी हैं उनसे साक्षात्‍कार हो रहा है।

 


हमारे मन में क्‍या है, इसे हमने लाख तालों में बन्‍द कर लिया है, ऊपर इतनें आवरण हैं कि हम जान ही नहीं पा रहें है कि हमारे मन में क्‍या हैं? तालाब के पानी में इतना कचरा डाल दिया है कि अन्‍दर का निर्मल जल ऊपर से दिखायी ही नही दे रहा है। कभी कचरे को हटाने का मन होता भी है तो मुठ्ठीभर कचरा हटाते हैं हमारे अन्‍दर की आत्‍मीयता कुन्‍द होने लगती है। तब प्रेम की ज्‍योति कही बुझ जाती है और तब मन में संवेदना जन्‍म लेती है। यह संवेदना दिखती नही हैं लेकिन जैसे ही परिस्थिति या किसी दृश्‍य का निर्माण होता है, संवेदना जागृत होती है और आखोँ के रास्‍ते बह निकलती है। आपने देखा होगा कि कुछ लोग बात-बात पर रो देते हैं, हम कहते है कि भावुक व्‍यक्ति है। लेकिन भावुकता के और अन्‍दर जाइए, कहीं न कहीं रिश्‍तों में आत्‍मीयता की कमी और मन के ऊपर आवरणों की भरमार होगी। फिल्‍म या सीरियल देखते हुए हमें किस बात या सीरियल देखते हुए हमें किस बात पर रोना आता है, पड़ताल कीजिए, हमारा बिछोह वहीं है। जानिये उस दर्द को और उस आत्‍मीयता को वापस पाने की कोशिश कीजिए, अपार संतुष्टि मिलेगी लेकिन अक्‍सर यह सम्‍भव होता नहीं है। क्‍योकि आत्‍मीयता अकेले से नहीं होती यह दोनों पक्षों का मामला है, लेकिन यदि हमें अपने मन का पता लग गया तो कहीं न कहीं रास्‍ते भी निकल ही आएगें। एक रास्‍ता ना मिला तो दूसरा कोई मार्ग जरूर दिखायी देगा। इसलिये मन को जरूर उजला करने का प्रयास करना चाहिये।

 


हमारा मन किन तत्‍वों से बना हैं, हम क्‍या चाहतें हैं, यह कभी जाननें का प्रयास ही नहीं किया बस दुनिया में किसे सम्‍मान मिलता हैं, वही बनने का प्रयास करते रहे। अपने मन की चाहत को पीछे धकेल दिया और दुनिया की चाहत को आगे कर लिया। यदि मन की ही होती तो आज मन को खोजना नही पड़ता, पहले तो मन को दूसरों की चाहत के नीचे दबा दिया। अब उसे खोजने का प्रयास कर रहे हैं। आप भी झाँक लें, यदि मौका मिल जाए तो कि क्‍या बनना हमारे जीवन का सत्‍य था और हम क्‍या बन गये है। एक खोखला जीवन जी रहें है, जिसमें कोई पैसे के पीछे भाग रहा है, कोई सत्‍ता के पीछे और कोई सम्‍मान के पीछे। काम कोई नही कर रहा है, बस खुद को काम की आड़ में कुछ पाने का जरिया बना लिया है। यदि कुछ पाने का नजरिया बदल जाएगा तो काम में आनन्‍द आ जाएगा। हर चीज में नफा-नुकसान ढूंढ़ने पर काम ही बोझ बन गया है।

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