दो पल की जिंदगी है,
आज बचपन, कल
जवानी,
परसों बुढ़ापा, फिर
खत्म कहानी है।
चलो हंस कर जिए, चलो
खुलकर जिए,
फिर ना आने वाली यह
रात सुहानी,
फिर ना आने वाला यह
दिन सुहाना।
कल जो बीत गया सो
बीत गया,
क्यों करते हो आने
वाले कल की चिंता,
आज और अभी जिओ, दूसरा
पल हो ना हो।
आओ जिंदगी को गाते
चले,
कुछ बातें मन की
करते चलें,
रूठो को मनाते चलें।
आओ जीवन की कहानी
प्यार से लिखते चले,
कुछ बोल मीठे बोलते
चले,
कुछ रिश्ते नए बनाते
चले।
क्या लाए थे क्या ले
जायेंगे,
आओ कुछ लुटाते चले,
आओ सब के साथ चलते
चले,
जिंदगी का सफर यूं
ही काटते चले।
जिंदगी गुलामी में
नहीं, आजादी से जियो,
लिमिट में नहीं
अनलिमिटेड जिओ,
कल जी लेंगे इस
ख्याल में मत रहो,
क्या पता आपका कल हो
ना हो।
कितनी दूर जाना है
पता नहीं ,
कितनी दूर तक चलेगी
पता नहीं,
लेकिन कुछ ऐसा कर
जाना है,
तुम हो ना हो, फिर
भी तुम रहो।
कहीं धूप तो, कहीं
छाव है,
कहीं दुख तो, कहीं
सुख है,
हर घर की यही कहानी
है,
यह रीत पुरानी है।
आज रात दुख वाली है
तो कल दिवाली है,
दुख-दर्द और खुशियों
से भरी यही जिंदगानी है,
तेरी मेरी यह कहानी
निराली है,
यह कहानी पुरानी है, लेकिन
हर पन्ना नया है।
आज नया है तो कल
पुराना है,
फिर किसी और को आना
है,
फिर किसी को जाना है,
यही मतवाली जिंदगी
का तराना है।
भीड़ तो बहुत होगी नई राह बना सको तो चलो।
माना कि मंजिल दूर है एक कदम बढ़ा सको तो चलो,
मुश्किल होगा सफर, भरोसा है खुद पर तो चलो।
हर पल हर दिन रंग बदल रही जिंदगी,
तुम अपना कोई नया रंग बना सको तो चलो।
राह में साथ नहीं मिलेगा अकेले चल सको तो चलो,
जिंदगी के कुछ मीठे लम्हे बुन सको तो चलो।
महफूज रास्तों की तलाश छोड़ दो धूप में तप सको तो चलो,
छोटी-छोटी खुशियों में जिंदगी ढूंढ सको तो चलो।
यही है ज़िन्दगी कुछ ख़्वाब चन्द उम्मीदें,
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो।
तुम ढूंढ रहे हो अंधेरो में रोशनी ,खुद रोशन कर सको तो चलो,
कहा रोक पायेगा रास्ता कोई जुनून बचा है तो चलो।
जलाकर खुद को रोशनी फैला सको तो चलो,
गम सह कर खुशियां बांट सको तो चलो।
खुद पर हंसकर दूसरों को हंसा सको तो चलो,
दूसरों को बदलने की चाह छोड़ कर, खुद बदल सको तो चलो।
बचपन बीत गया लड़कपन
में,
जवानी बीत रही घर बनाने में,
जंगल सी हो गई है
जिंदगी,
हर कोई दौड़ रहा
आंधी के गुबार में।
हर रोज नई भोर होती,
पर नहीं बदलता
जिंदगी का ताना बाना,
सब कर रहे हैं अपनी
मनमानी,
लेकिन जी नहीं रहे
अपनी जिंदगानी।
कोई पास बुलाए तो डर
लगता है,
कैसी हो गई है यह
दुनिया बेईमानी,
सफर चल रहा है जिंदा
हूं कि पता नहीं,
रोज लड़ रहा हूं चंद
सांसे जीने के लिए।
मिल नहीं रहा है कोई
ठिकाना,
जहां दो पल सिर
टिकाऊ,
ऐसे सो जाऊं की
सपनों में खो जाऊं,
बचपन की गलियों में
खो जाऊं।
वो बेर मीठे तोड़
लाऊं,
सूख गया जो तालाब
उसमें फिर से तैर आऊं,
मां की लोरी फिर से
सुन आऊं,
भूल जाऊं जिंदगी का
ये ताना बाना।
देर सवेर फिर से भोर
हो गई,
रातों की नींद फिर
से उड़ गई,
देखा था जो सपना वो
छम से चूर हो गया,
जिंदगी का सफर फिर
से शुरू हो गया।
आंखों का पानी सूख
गया,
चेहरे का नूर कहीं
उड़ सा गया,
अब जिंदगी से एक ही
तमन्ना,
सो जाऊं फिर से उन
सपनों की दुनिया में।
जिंदगी की इस
आपाधापी में,
कब जिंदगी की सुबह
से शाम हो गई,
पता ही नहीं चला।
कल तक जिन मैदानों
में खेला करते थे,
आज वो मैदान नीलाम
हो गए,
पता ही नहीं चला।
कब सपनों के लिए,
सपनों का घर छोड़
दिया पता ही नहीं चला।
रूह आज भी बचपन में
अटकी,
बस शरीर जवान हो गया।
गांव से चला था,
कब शहर आ गया पता ही
नहीं चला।
पैदल दौड़ने वाला
बच्चा कब,
बाइक, कार
चलाने लगा हूं पता ही नहीं चला।
जिंदगी की हर सांस
जीने वाला,
कब जिंदगी जीना भूल
गया, पता ही नहीं चला।
सो रहा था मां की
गोद में चैन की नींद,
कब नींद उड़ गई पता
ही नहीं चला।
एक जमाना जब दोस्तों
के साथ,
खूब हंसी ठिठोली
किया करते थे,
अब कहां खो गए पता
नहीं।
जिम्मेदारी के बोझ
ने कब जिम्मेदार,
बना दिया, पता
ही नहीं चला।
पूरे परिवार के साथ
रहने वाले,
कब अकेले हो गए, पता
ही नहीं चला।
मीलों का सफर कब तय
कर लिया,
जिंदगी का सफर कब
रुक गया,
पता ही नहीं चला।
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